Mahakumbh Mela 2025 बहुत से लोगो ने कभी न कभी कुम्भ या कुंभ मेला का नाम सुना ही होगा, मगर इसका अर्थ, महत्व, आयोजन का समय, इतिहास और आखिर क्यों लोग लगाते है डुबकी, बहुत कम लोगो को ही मालूम होगा। हमे इस बात से खुशी होनी चाहिए क्योंकि इस मेले को दुनिया का सबसे बड़ा और शांतिपूर्ण मानव संगम माना जाता है। आइये आज हम कुंभ और कुंभ से जुड़ी कुछ खास बाते जानते है।
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Kumbh Mela का अर्थ क्या है?/कुंभ मेला को कुंभ मेला ही क्यों बोलते है?
पौराणिक कथाओं के अनुसार कुंभ मेला का मतलब ‘अमरत्व का मेला’ होता है। समुद्र मंथन के समय कुंभ (कलश) से अमृत बूँदें इन चार जगहों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर गिरी थीं जिससे नाम मिला कुंभ और मेला का मतलब है सामूहिक मिलन या बहुत से लोगो का एक जगह मिलना इस तरह इसका नाम पड़ा कुंभ मेला।
Kumbh Mela क्या है?
कुंभ मेला भारत का एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, यह मेला हर 12 वर्षो में चार स्थानों पर लगता है- पहला प्रयागराज (इलाहाबाद), दूसरा हरिद्वार, तीसरा उज्जैन, और चौथा नासिक। इन जगहों की नदियां जैसे गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, शिप्रा और कावेरी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है।
Kumbh Mela का महत्व
कुंभ मेला का मुख्य उद्देश्य, श्रद्धालुओं को पवित्र नदियों में स्नान करने का अवसर प्रदान करता है। ऐसा माना जाता है कि इन नदियों में स्नान करने से आपके सारे पाप नाश हो जाते है और आत्मा शुद्ध होती है। इसके अलावा, यह मेला भारत की धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है।
Kumbh Mela का पौराणिक इतिहास
कुंभ मेले की कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने अमृत कलश प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया। इस मंथन के दौरान अमृत कलश से अमृत की बूंदें चार स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरीं। इन्हीं स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।
Kumbh Mela के आयोजन का समय
कुंभ मेले का आयोजन खगोलीय गणनाओं पर आधारित होता है। यह मेला तभी आयोजित किया जाता है जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं।
कुंभ स्नान कहा-कहा होता है?
- प्रयागराज में संगम तट पर।
- हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे।
- उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर।
- नासिक में गोदावरी नदी के तट पर।
Kumbh Mela और उसकी विशेषताएं
- श्रद्धालु इस दौरान पवित्र नदियों में स्नान करते हैं।
- विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत मेले में भाग लेते हैं और अपने प्रवचनों से श्रद्धालुओं को प्रेरित करते हैं।
- कुंभ मेले में लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से भाग लेने आते हैं।
- यहाँ भारत की विविध संस्कृति, परंपराएँ और रीति-रिवाजों का प्रदर्शन होता है।
- यह मेला आध्यात्मिक शांति और आत्मिक अनुभव का सबसे बड़ा मंच है।
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कुंभ मेले के शाही स्नान की तिथि 2025/ Kumbh Mela Dates Hindi
2025 मे कुंभ मेला 13 जनवरी 2025, सोमवार से 26 फ़रवरी 2025, बुधवार तक आयोजित होगा। यह छः दिन शाही स्नान की तिथि है।
1 | पौष पूर्णिमा | 13 जनवरी 2025, सोमवार |
2 | मकर संक्रान्ति | 14 जनवरी 2025, मंगलवार |
3 | मौनी अमावस्या | 29 जनवरी 2025, बुधवार |
4 | वसन्त पंचमी | 3 फ़रवरी 2025, सोमवार |
5 | माघी पूर्णिमा | 12 फ़रवरी 2025, बुधवार |
6 | महाशिवरात्रि | 26 फ़रवरी 2025, बुधवार |
FAQs
कुंभ का मेला 12 साल बाद ही क्यों लगता है?
समुद्र मंथन के समय अमृत प्राप्ति के लिए देव और दानवों में 12 दिनों तक भीषड़ युद्ध चला था वो बारह दिन मनुष्य योनि में 12 वर्ष के बराबर है इसलिए कुंभ का मेला 12 साल बाद लगता है।
कुंभ कितने प्रकार के होते हैं?
पौराणिक कथाओ के अनुसार कुंभ भी 12 प्रकार के होते है, 4 पृथ्वी पर और 8 देवलोक में।
कुंभ मेला प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक में ही क्यों लगता है
समुद्र मंथन के समय कुंभ (कलश) से अमृत बूँदें इन्ही चार जगहों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर गिरी थीं इसलिए कुंभ मेला का आयोजन यही पर होता है।